शनिवार, 10 अप्रैल 2010

अरे बाप, लड़कियां इतनी पकाऊ

सुनते आ रहे हैं कि लड़के लड़कियों को पटाने के लिए उसे पकाते रहते हैं। यानी, बातों में उलझाए रहते हैं। एक बंद नहीं कि दूसरा शुरू। लेकिन दिल्ली का हाल ही अजूबा है। यहां तो लड़कियां फोन कर-करके लड़कों को पकाती है। न दिन देखती है न रात। बस, बात करेंगी? आप नहीं चाहेंगे तब भी। आपकी रूचि नहीं होगी तो जगाएगी... है न जबरदस्ती।
मोबाइल ने इस मुसीबत को और बढ़ा देती हैं। मेरी एक मित्र हैं, पंजाबन। वो कहती है कि बिहारी पकाऊ होते हैं। चलिए मान लिया...उनकी बात। आखिर हमारी मित्र हैं। दोस्तों में ये बाते चलती हैं। लेकिन पिछले कुछ महीनों से मुझे तो दिल्ली की लड़कियों ने परेशान कर रखा है। नंबर बदल-बदल कर फोन करती हैं। कभी किसी कंपनी के नाम पर तो कभी किसी दूसरी। आप न चाहें तब भी आपको फोन करेगी।
फोन करते ही एक सांस में अपना नाम-पता-काम सब बता देंगी। आपके पूछने से पहले। अमूमन ऐसे कॉल लोन के लिए आते हैं या फिर इंवेस्टमेंट करने के लिए। अव्वल तो यह कि आपका नाम उनको पहले से पता होता है और छूटते ही आपके नाम के संग संबोधन करेंगी। आपको लगेगा कि ये आपकी जान-पहचान की है, लेकिन दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं होता।
ऐसा ही एक फोन आज आईसीआईसीआई से मेरे पास आया। जान न पहचान, फिर भी सलाह देती हैं कि भविष्य के लिए कुछ रकम बचा लें। आगे काम आएगा। मैंने कहा नहीं करना है तो पूछती हैं कि काम नहीं करते? बोला नहीं, तो गुर्राती हैं कि फिर कैसे काम चलता है, मतलब कि रोटी कहां से मिलती है? अब, भला मेैं अपना पूरा ब्यौरा दूं उनको। लेकिन, यकीन मानिए, वे नहीं मानी। पूछती हैं, दिल्ली में रहते हैं, पांच वर्षों से मोबाइल रखें हैं, पैसा तो होगा ही। मैंने बोला, पिताजी का पैसा है, उसी के बल पर जीता हूं तो बोलती हैं- आजकल ऐसा कहां होता है? अब आप ही बताएं, कैसे उनकी बोलती बंद करूं?
इसी प्रकार करीब सप्ताह भर पहले कोटक महिन्द्रा बैंक से फोन आया, वे भी बचत की महिमा बता रहे थे। योजना और कंपनी का प्रोफाइल सुनने के बाद जब मैंने कहा कि पैसा नहीं है तो बड़े रौब से पूछती हैं, दिल्ली में करते क्या हैं? पूछने का अंदाज फिरौती जैसा था। मैंने कहा, घास छिलता हूं तेा बोलती हैं कि दिल्ली में घास कहां है? अब, मैं उनको दिल्ली सरकार के बागवानी विभाग से आंकड़ा लाकर दूं। पता नहीं, लड़कियों को अकल कब आएगी? कब वो पकाना छोड़ेगी? हो कोई सॉल्यूशन तो जरूर बताएं....

7 टिप्‍पणियां:

chhattishgarh_neelam ने कहा…

yahi kahani apni bhi boss par jara samjho vo unka kaam hai.umko apna kaam karne do akhi karm hi pooja hai

मनीष चौहान ने कहा…

Marketism aur marketing ke daur men is tarah ke wakye ho rahe hain to ismen aashchrya ki koi bat nahi... aapki life secure karna unka maksad nahin... unhen to apni 'life' secure karni hai... turn over jo pura karna hota hai.........

पंकज झा. ने कहा…

अरे सर..आप भी मेरे जैसे बिहारी ही रह गए....उनको पकाने के पैसे मिलते हैं और आप समझते हैं कि वो पटने-पटाने के लिए ऐसा करती हैं....! हा हा हा हा .
पंकज झा.

Shekhar Kumawat ने कहा…

ha ha ha

to pata chal gaya na me kyun likhta hu assi kavitaye



shekhar kumawat

http://kavyawani.blogspot.com/

Rohit Singh ने कहा…

अमा यार ये उनका काम है करने दो....बचने का एक तरीका है बिना सुने फोन काट दो....फोन तो आएगा ही उन सबका . जब कलाम साहब तक नहीं बच पाए, देश के मुख्य न्यायाधीश ये दुखड़ा रो चुके है औऱ कुछ नही पो पाया तो हम लोगो की बिसात क्या...

arvind ने कहा…

मैंने कहा, घास छिलता हूं तेा बोलती हैं कि दिल्ली में घास कहां है? अब, मैं उनको दिल्ली सरकार के बागवानी विभाग से आंकड़ा लाकर दूं। पता नहीं, लड़कियों को अकल कब आएगी?...हा हा हा हा .

विनीत झा ने कहा…

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