शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

एक नया महासागर

पृथ्वी पर बन रहा है एक और नया महासागर। नए युग का आगाज और एक कालखंड का अंत। नतीजन, इथोपिया और इरिट्रेया के बड़े हिस्से अफ्रीका से अलग हो जाएंगे। कोई तो है जो इस संसार के तमाम प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है। पुराने चीजों के जगह पर नए का निर्माण होता है और फिर नई ईबारत लिखी जाती है। अभी तक पृथ्वी पर सात महासागर ही हैं लेकिन आने वाले समय में एक और इजाफा होगा। अफ्रीका में यह नवनिर्माण प्रारंभ हो चुका है। थल जल में परिवर्तन होगा। नव सृजन होगा। थलचर विनाश होंगे और जलचर अस्तित्व में आएंगे।
अफ्रीकी भूपटल पर आई दरार कहीं-कहीं तो आठ मीटर तक चौड़ी है सैटेलाइट के आँकड़े बता रहे हैं कि हाल के दशकों में भूपटल पर आई सबसे बड़ी दरार धीरे-धीरे अफ्रीका के एक नए महासागर में तब्दील हो सकती है। भूवैज्ञानिक कह रहे हैं कि पिछले साल आई यह दरार स्वाभाविक रुप से लाल सागर की ओर बढ़ रही है। यह भी गौर करने योग्य है कि अमेरिका के वैज्ञानिकों ने एक नए कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद से दावा किया है कि लाल ग्रह नाम से जाने जाने वाले मंगल ग्रह के एक तिहाई हिस्से पर कभी महासागर हुआ करता था। उत्तरी इलिनॉयस विश्वविद्यालय और लूनर एण्ड प्लैनेटरी इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने कहा कि उन्होंने मंगल पर दर्जनों घाटियों का पता लगाने में सफलता हासिल की है। इस खोज में यह पाया गया है कि पहले से ज्ञात घाटियों की तुलना में इन घाटियों की संख्या दो गुने से ज्यादा है। विश्वविद्यालय के भूविज्ञान के प्रोफेसर वी लुओ ने कहा कि यह सभी निष्कर्ष घाटियों के नेटवर्क से प्राप्त नतीजों से निकाले गए हैं। उन्होंने कहा कि वहां और अधिक घाटियों की मौजूदगी यह दर्शाती है कि प्राचीन मंगल ग्रह पर वर्षा होती थी, वहीं उसके वैश्विक परिदृश्य को देखने से यह पता चलता है कि वहां के उत्तरी भाग में कभी विशालकाय महासागर हुआ करता था। खोज के अनुसार मंगल पर घाटियों के अस्तित्व से ऐसा लगता है कि यह धरती की नदियों से मेल खाता है और इससे यह साबित होता है कि कभी वहां जीवन हुआ करता था। उल्लेखनीय है कि जर्नल ऑफ जीयोग्राफिकल रीसर्च के प्लेनेट रिपोर्ट के अनुसार इससे पहले वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाते हुए कहा था कि मंगल पर प्राचीन काल में एक समुद्र हुआ करता था।
बहरहाल, वैज्ञानिकों का दावा है कि यदि यह महासागर में तब्दील हुई तो इथोपिया और इरिट्रेया के बड़े हिस्से को अफ्ऱीका से अलग कर देगी। हालांकि इस प्रक्रिया में कुछ ज़्यादा समय लग सकता है। जैसा कि वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे हैं, कोई दस लाख वर्ष। साठ किलोमीटर लंबी ये दरार पिछले सितंबर में आए एक भूकंप के बाद आई थी। वैज्ञानिकों के आकलनों में कहा गया है कि दरार अप्रत्याशित गति से बढ़ रही है।
जैसा कि दरार से दिखाई देता है, भूगर्भ से निकला पिघला हुआ लावा एक महासागर का आधार बनाने के लिए धीरे-धीरे ठोस रुप ले रहा है। ऑक्सफर्ड़ यूनिवर्सिटी के डॉक्टर टिम राइट का कहना है कि यदि दरार इसी तरह बढ़ती रही तो अफ्रीका का एक हिस्सा कोई दस लाख वर्षों में महाद्वीप से अलग हो जाएगा। इस प्रक्रिया में एक नया महासागर जन्म ले लेगा। यह दरार लाल सागर से जा मिलेगी और महासागर बहकर आ जाएगा। काबिलेगौर है कि डॉक्टर राइट ब्रिटेन और इथोपिया की उस टीम के सदस्य भी हैं जो इस दरार का अध्ययन कर रही है। यह टीम संवेदनशील भूगर्भीय उपकरणों के अलावा सैटेलाइट के चित्रों और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, के अंतरिक्ष यान एन्वीसेट के आँकड़ों का उपयोग कर रही है।
कहा जा रहा है कि यदि इसी प्रकार प्रकृति में नए सृजन होते रहे, तो किसी प्रकार की अनहोनी से भी मनाही नहीं की जा सकती है। धरती का तापमान शायद हमारे कारण बढ़ रहा है, शायद नहीं! इस संबंध में कुछ भी सिद्ध नहीं किया जा सका है। जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए गठित अंतर्राष्ट्रीय समिति आई.पी.सी.सी.की मानें तो अधिकांश वैज्ञानिकों के अनुसार मानवीय गतिविधियाँ ही धरती को और गर्म कर रही हैं, हालाँकि इसका खंडन करने वाले कई वैज्ञानिक तथ्य भी मौजूद हैं। कारण जो भी हो, इस बात से कतई इंकार नहीं किया जा सकता कि मनुष्य ने प्रकृति का न सिफऱ् दोहन किया है, बल्कि उसको नुकसान भी पहुँचाया है। कम से कम इस बारे में प्रयासों की आवश्यकता तो अवश्य है।

1 टिप्पणी:

sanjayinmedia.blogspot.com ने कहा…

bahut badhiya bandhu. esme samvedana ki dhar kuch aur majboot karte to maja aa ajata. lage rahiye.