रविवार, 19 अप्रैल 2009

तबाही का अंदेशा


विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार पृथ्वी के तापमान में मध्यम वृद्धि का स्तर 1970 से शुरू हुआ, जो अब लगातार बढ़ रहा है। इसके कारण हर साल साढ़े चार लाख लोगों को असमय मौत का शिकार होना पड़ रहा है। अगर यही हालात रहे तो वर्ष 2030 तक यह आंकड़ा दुगना होना तय है यानी हर साल नौ लाख से अधिक लोगों की मौत। वर्ष 2003 में यूरोप में बड़ी भीषण गर्मी को लोग अभी तक नहीं भूले हैं, जिसमें 20 हजार से अधिक जानें गई थीं।इस साल जुलाई-अगस्त में फिर भीषण गर्मी की चेतावनी दी जा रही है। वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह साफ़ हो चुका है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण बाढ़,चक्रवात और गर्म हवा की घटनाएं बढ़ जाती हैं। कहने की ज़रूरत नहीं है कि इनके कारण न सिर्फ़ भारी तबाही होती है, बल्कि बीमारियांॅ भी तेज़ी से फैलती हैं। इसका सर्वाधिक दुष्परिणाम ग़रीब देशों को भोगना पड़ेगा।

ग्लोबल वार्मिंग के चलते हवा, पानी और पर्यावरण सर्वाधिक प्रभावित होंगे और इन्हीं से परंपरागत और नई बीमारियों का जन्म होगा।चिकित्सा विज्ञान मलेरिया पर अब तक नियंत्रण नहीं पा सका है, जबकि मच्छरों ने प्रगति करते हुए डेंग्यू नामक नई ख़तरनाक बीमारी फैलाना शुरू कर दिया है। कुछ समय पूर्व अफ्रीकी देश मोजांबिक में आई बाढ़ के बाद वहां मलेरिया जम कर पसर गया था ग्लोबल वार्मिंग से सर्वाधिक ख़तरा वायु प्रदूषण का है। ओजोन की छतरी में छेद के बाद पृथ्वी पर सूर्य की पराबैंगनी किरणों के दुष्प्रभाव ने अभी से अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। इसी के साथ पृथ्वी की सतह पर ओजोन में वृद्धि का ख़तरा भी बढ़ गया है।इससे हृदय और फेफड़े संबंधी रोगों में भी ख़ासी बढ़ोत्तरी होगी। परिवहन का बढ़ता प्रदूषण जहांॅ कार्बन डाॅय आॅक्साइड बढ़ा रहा है, वहीं फेफड़ों तक भी गहरी पैठ बना रहा है। स्टाॅक होम मेडिकल साइंस रिसर्च जनरल के अनुसार यह समय आ गया है कि हम वाहनों के जनरल के अनुसार यह समय आ गया है कि हम वाहनों के कम से कम इस्तेमाल पर अभी से अमल शुरू कर दें, ताकि संभावित ख़तरे का एक हद तक मुकाबला किया जा सके।

मानव तथा प्रकृति के लिए हवा के बाद दूसरी ज़रूरत पानी की है। सात महासागरों और दो ध्रुवों से घिरी पृथ्वी पर उपलब्ध जल में से मात्र एक प्रतिशत ही पीने योग्य है। इसीलिए अभी से यह कहा भी जाने लगा है कि अगला विश्वयुद्ध पानी को लेकर ही होगा।मानव अभी इस संभावित खतरे से अनजान-सा है और फ़िलहाल बाढ़ और तूफानों को झेलने के लिए अभिशप्त है। सुनामी पीड़ितों को आज भी मदद की दरकार है और लगातार नए-नए सुनामी पैदा होने के संकेत मिल रहे हैं। मुंबई वासियों को पिछले साल भारी वर्षा और बाढ़ ने खूब परेशान किया था,जबकि बंगाल-बिहार की तो यह स्थायी नियति है। ये हालात दूसरे, देशों में भी हैं, जो भविष्य की भारी तबाही के संकेत हैं। वैश्विक गर्माहट ने अचानक तीव्रतम बारिश के हालात बना दिए हैं। मंुबई एक उदाहरण है। आने वाले दिनों में ऐसे भयावह मंज़र कहीं भी दिखाई दे सकते हैं। अचानक आने वाली बाढ़ जन-धन की हानि के साथ कई बीमारियां भी लाती हैं। महानगरीय संस्कृति में जल-मल व्यवस्था पास-पास ही होती है, जो बाढ़ के कारण कई गंभीर बीमारियों का कारण बनती हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण अचानक भीषण बारिश और उससे होने वाली बीमारियों में इज़ाफे को रिकार्ड भी किया जा चुका है। अमेरिका स्थित हावर्ड मेडिकल रिसर्च इंस्टीटयूट के एक अध्ययन में पाया गया है कि अमेरिकी शहरों में भीषण बारिश के बाद जनजनित रोगों में भारी बढ़ोत्तरी हुई है।बांग्लादेश में अक्सर फैलने वाले हैजे के प्रकोप को भी वैज्ञानिक ग्लोबल वार्मिंग से जोड़ कर देख रहे हैं। मिशिगन यूनिवर्सिटी का एक अध्ययन दल यह पता करने में लगा है कि प्रशांत महासागर के ताप के कारण तो हैजे का संक्रमण नहीं होता है।अगर ऐसा होता है तो हैजे नामक महामारी के फिर से सिर उठाने का ख़तरा उत्पन्न होना मान लेना चाहिए।

3 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

प्रकृति से छेडछाड का मूल्‍य तो हमें चुकाना ही होगा ... अभी हम संभल जाएं तो शायद कुछ फायदा हो।

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

बिल्‍कुल सही कहा मित्र

Sanjay Grover ने कहा…

हुज़ूर आपका भी एहतिराम करता चलूं ............
इधर से गुज़रा था, सोचा, सलाम करता चलूं ऽऽऽऽऽऽऽऽ
YE MERE KHWAABOn KI DUNIYA NAHIn SAHI, LEKIN/
AB AA GAYAA HUn TO DO DIN QUYAAM KARTA CHALUn//
-(बकौल मूल शायर)

ये हालात दूसरे, देशों में भी हैं, जो भविष्य की भारी तबाही के संकेत हैं। वैश्विक गर्माहट ने अचानक तीव्रतम बारिश के हालात बना दिए हैं। मंुबई एक उदाहरण है। आने वाले दिनों में ऐसे भयावह मंज़र कहीं भी दिखाई दे सकते हैं।