सोमवार, 9 मार्च 2009

क्या नाम दूं

अपनी इस ब्लॉग को आखिर क्या नाम दूं - यह सवाल मुझे काफी परेशन करता रहा। एक रंग, एक मिजाज अथवा एक विषय-वस्तु को लेकर यदि इसका मजमून होता तो कोई परेशानी नहीं होती। मगर मेरे मन में तो अपनी शब्द-साधना के लिए विभिन्न विषय-वस्तुओं के पत्थरों को उठाकर अलग-अलग रूप में तराशने व रंग-बिरंगे परिधानों से सजाने की लालसा है। मेरा मानना है कि कोई भी विचार या रचना, उंगलियों की पोर को होने वाला वह अहसास है, जो वक्त की नब्जों को टटोलने के बाद उन्हें होता है। ..... और वक्त की नब्ज जैसे हर समय एक ही चाल से नहीं चलती व उसपर रखे हुए पोरों को भी एक जैसा एहसास हर समय नहीं होता - ठीक वैसे ही मेरे इस ब्लाॅग का रंग-रूप और पैरहन भी एक जैसा नहीं हेागा’। जिस प्रकार इनसानी जिंदगी धूप-छांव, वफा-जफा, इशक-ओ-मुहब्बत, रंजो-गम, खुशहाली-बदहाली, वसंत-पतझड़ व अपने-परायों की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर चलकर कभी अपने पांव के तलुवों में छालों का उपहार पाकर कराहती है तो कभी शाह-राहों पर तेज रफ्तार दौड़ती हुई मुस्कराती नजर आती है। मेरे मन की बातें भी उस कराह और मुस्कान से जुदा न रहें ... यह प्रयास हमेशा ही रहेगा।

3 टिप्‍पणियां:

Udayesh Ravi ने कहा…

BAHURANG naam achchha rahega Subhash jee. Kahiye toh Header bana ke bhej doon.

SANJAY SWADESH ने कहा…

behatrin banaya hain. aakhir app v blogs ki duniya me kud hi gye. swagat hain.
par aam aadmi se yah dur hain, phir v achha madyama hin bahusankyak logt tak pahuchane ka.
lage rahiye hamari subhkamaye aapke sath hain.
sanjay swadesh

करण समस्तीपुरी ने कहा…

एक जिम्मेदार भारतीय के नाते आपकी चिंता जायज है ! आलेख प्रासंगिक भी है ! किन्तु व्यक्तिगत रूप से यह मुझे आपकी दिमागी खुजली के से बहुत आगे कुछ नहीं लगा किन्तु आपकी पत्रकारिता अवश्य निखर कर आयी है ! प्रकाशन पूर्व प्रूफ़-रीडिंग कर लें तो और पेशेवर दिखेंगे ! उम्मीद करता हूँ कि आगे कुछ रचनाएं मेरे रुझान की भी होंगी ! हिंदी ब्लोगिंग की दुनिया में पदार्पण के लिए धन्यवाद !!