बुधवार, 2 जून 2010

ऐ भाई... आगे भी, पीछे भी

जब केंद्र सरकार महंगाई सहित तमाम आर्थिक मुद्दों को लेकर विपक्षी दलों और जनता के निशाने पर हों, वैसे में सरकार के लिए 3-जी स्पेक्ट्रम की नीलामी इस भयावह गर्मी में कुछ राहत लेकर आई। हालांकि इसमें पैसे के साथ एक बड़ी सीख भी मिली है, जिसे भविष्य में याद रखने की जरूरत है। अगर सौदों में इसी तरह पारदर्शिता बरती जाए और बाजार की शक्तियों को लेवल प्लेइंग फील्ड प्रदान किया जाए तो हर किसी को लाभ मिलेगा। यही उदारीकरण और खुले बाजार का सूत्र है, जिसकी अनदेखी हमेशा नुकसानदेह होती है, जैसा कि 2-जी मामले में हुआ।
काबिलेगौर है कि तब दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने ट्राई की सिफारिशों और अपने मंत्रिमंडलीय सहयोगियों की राय को दरकिनार कर 'पहले आओ पहले पाओÓ के आधार पर कुछ कंपनियों को लाइसेंस दे दिए और वह भी वर्ष 2001 के मूल्य के आधार पर। सरकार को इससे आज की तुलना में बेहद कम राजस्व हासिल हुआ था। उस पर काफी हंगामा हुआ और राजा पर इसमें गड़बड़ी करने का आरोप भी लगा। आज सीबीआई यह जांच कर रही है कि किस आधार पर आठ कंपनियों को 2-जी स्पेक्ट्रम दे दिए गए। इनमें स्वान और यूनिटेक जैसी कंपनियां भी हैं जो दूरसंचार के क्षेत्र में कहीं नहीं ठहरतीं। सो, इस बार सरकार सचेत थी। उसने खुली नीलामी का रास्ता अपनाया, जिसका नतीजा सामने है। इससे हुई आमदनी से सरकार राजकोषीय घाटे की भरपाई कर पाने में कुछ हद तक सफल रहेगी। 3-जी यानी मोबाइल की तीसरी पीढ़ी। इससे अब मोबाइल पर विडियो कॉल संभव हो सकेगी। फोन करने और रिसीव करने वाले एक दूसरे का चेहरा ही नहीं, विडियो भी देख सकेंगे।
वर्तमान में केंदसरकार और दूरसंचार मंत्री ए राजा थ्री जी स्पेक्ट्रम की नीलामी से ६७७१० करोड़ रुपए की भारी-भरकम रकम जुटाने को लेकर आल्हादित हैं। माना कि ३ जी स्पेक्ट्रम की नीलामी प्रक्रिया आशातीत ढंग से सफल रही, माना कि इससे मंदी प्रभावित देश के वित्तीय घाटे को दूर करने में महत्वपूर्ण मदद मिलेगी और माना कि अंतिम राशि ने खुद सिद्ध कर दिया है कि सारी प्रक्रिया कितनी पारदर्शी और साफ-सुथरी थी। लेकिन इस सफलता ने २००८ में २ जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में हुए गड़बड़-घोटाले को भी पूरी तरह अनावृत्त कर दिया है। केंर्द सरकार अब इस सवाल का जवाब देने से बच नहीं सकती कि आखिर क्या कारण थे कि जहां ३जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में लगभग सत्तर हजार करोड़ रुपए की रकम हासिल हुई वहीं २जी स्पेक्ट्रम के आवंटन से महज १०७७२ करोड़ रुपए ही प्राप्त हुए? इतनी जबरदस्त आॢथक संभावनाओं से युक्त २जी स्पेक्ट्रम को कौडिय़ों के भाव कैसे बेच दिया गया?
यहां भी गौर करने लायक है कि माकपा पोलित ब्यूरो और भाजपा दोनों ने आरोप लगाया कि 3 जी स्पेक्ट्रम नीलामी के नतीजों से साबित होता है कि केन्द्रीय संचार मंत्री ए राजा ट्राई की सिफारिशों को तोड़-मरोड़कर कुछ उद्योगपतियों को 2-जी स्पेक्ट्रम बेचने के कथित भ्रष्टाचार में शामिल रहे हैं। सो, माकपा ने मांग की कि राजा को अपने पद से तत्काल इस्तीफा देना चाहिए। यदि वह इस्तीफा देने से इनकार करते हैं तो प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उन्हें बर्खास्त करना चाहिए ताकि उस उच्च पद की गरिमा बनी रह सके जिसपर राजा सरकार में इस समय हैं।Ó वहीं भाजपा प्रवक्ता निर्मला सीतारमण ने कहा कि 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में बाजार तंत्र की वास्तविक कीमत के तहत लगभग 70 हजार करोड़ रुपये हासिल होने से साफ हो गया है कि 2-जी स्पेक्ट्रम बिक्री में दूरसंचार मंत्री ए राजा ने कथित रूप से भारी भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद किया है और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कम से कम अब अपनी चुप्पी तोडऩी चाहिए। फॉरवर्ड ब्लाक और भाकपा ने भी प्रधानमंत्री से इस प्रकरण पर देश को जवाब देने की मांग करते हुए कहा कि 2जी स्पेक्ट्रम बिक्री में व्यापक पैमाने पर कथित घोटाले की बात सही साबित हो रही है।
गौरकरने योग्य यह भी है कि कीमती 3जी स्पेक्ट्रम खरीदने वाली टेलीकॉम कंपनियों को लेकर शेयर बाजार ने सकारात्मक रुख प्रदर्शित किया । नीलामी के बाद अगले ही दिन खुले भारतीय शेयर बाजारों में ज्यादातर दूरसंचार कंपनियों के शेयरों में तेजी दर्ज की गई। विशेषज्ञ हालांकि इन कंपनियों के बढ़ते जा रहे कर्ज को लेकर भी चिंतित हैं। इन कंपनियों को अगले एक पखवाड़ें में 3जी नीलामी में लगी बोलियों की कीमत के 67,718 करोड़ रुपये सरकार को देने हैं। 13 सर्किलों में 12,295.46 करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम खरीदने वाली भारती एयरटेल का शेयर 0.23 फीसदी बढ़कर 260.15 रुपये पर पहुंच गया। जबकि 13 सर्किलों में ही 8,585.04 करोड़ रुपये के स्पेक्ट्रम खरीदने वाली रिलायंस कम्युनिकेशन का शेयर 0.73 प्रतिशत गिरकर 135.80 रुपये पर बंद हुआ। आइडिया का शेयर 0.95 प्रतिशत बढ़कर 53.25 रुपये पर बंद हुआ। आइडिया ने 5,768.59 करोड़ रुपये की लागत से 11 सर्किलों में बोली जीती है। एमटीएनएल के शेयर में 0.53 फीसदी की तेजी दर्ज की गई और यह 56.45 रुपये पर बंद हुआ। एमटीएनएल के पास पहले से ही 3जी स्पेक्ट्रम है लेकिन उसे नीलामी की बोली के आधार पर सरकार को 6,564 करोड़ रुपये चुकाने हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि दूरसंचार कंपनियों के प्रति आशावाद के कारण लोग ऊंची लागत और घटते मुनाफे का दबाव नहीं देख रहे हैं। तीव्र प्रतिस्पर्धा का मतलब है कि कंपनियों के प्रति उपभोक्ता मुनाफे में कमी आएगी। दूरसंचार उद्योग विशेषज्ञ महेश उप्पल के अनुसार, ' आंकड़े बहुत ज्यादा हैं, यह बहुत ही अव्यावहारिक होगा अगर हम इस क्षेत्र में स्थिरता की उम्मीद करें। आखिर तीन-चार अरब डॉलर कोई छोटी रकम नहीं है।Ó
दरअसल 3-जी सेवाएं मोबाइल फोन को एक छोटे से लैपटॉप में बदल देंगी। इससे विडियो कॉन्फ्रेंसिंग करने के अलावा मोबाइल पर लाइव टीवी प्रसारण देखा जा सकेगा। इससे मोबाइल पर इंटरनेट का इस्तेमाल बहुत सरल हो जाएगा। अब कोई चाहे तो मोबाइल से ही ब्लॉगिंग कर सकता है और अपनी वेबसाइट को भी आसानी से अपडेट कर सकता है। देश में रहन-सहन और कामकाज में तेजी से आ रहे बदलाव ने कन्जयूमर्स की अपेक्षाएं बढ़ा दी हैं। अब साधारण कस्टमर भी नई-नई सुविधाओं के लिए जेब से पैसे निकालने को तैयार है। सबसे बड़ी बात है कि युवाओं में लेटेस्ट सर्विसेज के प्रति उत्साह काफी ज्यादा है। 3-जी कई नए क्षेत्रों की चाबी की तरह है। आशा की जा रही है कि इससे टेली मेडिसिन और टेली एजुकेशन को बढ़ावा मिलेगा। इससे इंटरनेट विज्ञापनों की बाढ़ आ सकती है। इसी को ध्यान में रखकर तमाम बड़ी कंपनियों ने 3-जी स्पेक्ट्रम का लाइसेंस हासिल करने के लिए अपनी थैली खोल दी। हालांकि इससे यह आशंका व्यक्त की जा रही है कि ये कंपनियां अपनी सेवाएं महंगी रख सकती हैं। लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि प्रतिस्पर्द्धा के कारण वे एक हद से आगे नहीं जा सकतीं।