बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

किश्तों में जिन्दगी

कहीं न कहीं
मेरे अंदर
पैदा होता है एक जीवन
झकझोरता है मुझे
दिखाता है राह नई
मिलती है ऊर्जा
बढ़ती है ऊष्मा
उठने से लगते हैं
मेरे कदम
उसी पल
उभरता है
एक भयानक चेहरा
असफल अतीत
हताश वर्तमान
और
अनिश्चित भविष्य का
दहलता हँू में
थरथराने से लगते हैं
मेरे कदम
इसी तरह
कत्तरों में बनता-बिगड़ता रहा हँू
टुकड़ों में संवरता-बिखरता रहा हँू
किश्तों में जीता-मरता रहा हँू
चेतना के प्रसव से
चेतना के शून्य होने तक...
- विपिन बादल

कोई टिप्पणी नहीं: