१
ले के खत मेरा, जो हरकारा गया,
मुफ्त में मारा वो बेचारा गया।
मेरे हिस्से के अंधेरे तू भी जा,
अब यहां से भोर का तारा गया।
जब तलक नदियों में था, मीठा ही था,
क्यों समंदर में ये हो खारा गया।
जीत के चर्चे थे जिसके हर तरफ,
हार कर सामान वो सारा गया।
जब भी मरने की खबर 'माँझीÓ उड़ी,
लोग बोले ये, कि 'आवारा गयाÓ।
२
यूं ही ना मस्ताते रहना,
खुद को भी समझाते रहना।
दम घुटता है बेशक घर में,
फिर भी आते-जाते रहना।
खिड़की के रस्ते कमरे में,
नयी रोशनी लाते रहना।
अपने प्रश्नों से महफिल में,
सबको ही उलझाते रहना।
तट की चिंता छोड़ के 'माँझीÓ,
अपनी नाव चलाते रहना।
- देवेन्द्र माँझी
मो. ९८१०७९३१८६
शनिवार, 11 जुलाई 2009
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3 टिप्पणियां:
मेरे हिस्से के अंधेरे तू भी जा,
अब यहां से भोर का तारा गया।
Lajawaab, khoobsoorat hai gazal ...... sab sher ek se badh kar ek .... umdaa
बहुत बहुत सुन्दर कविता ........बधाई
ले के खत मेरा, जो हरकारा गया,
मुफ्त में मारा वो बेचारा गया।
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बहुत सुन्दर गजले
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